प्रिय मित्रों लोगों से अपनी बात कैसे बनवाएं| मित्रों मैं जब भी अपनी किसी बात को जब किसी के सामने एक्सप्रेस (express) करना चाहता था तब मैंने बहुत चैलेंज (challenges ) फेस (face) किए और फाइनली (finally) मुझे एक ट्रिक (trick) पता पड़ी जिसके बारे में मैं आपको आज इस आर्टिकल (article) में बताऊंगा |
इस ट्रिक से आप अपनी किसी भी बात को मनवा सकते हैं बशर्ते आपको ट्रिक्स के बारे में पता हो | तो क्या है यह तीन स्टेप्स –
दोस्तों यह 3 स्टेप्स है Logos Ethos and Pathos , आज हम इसके बारे में जानेंगे कि क्या है यह सब और आप और हम इन तीन टेक्निक्स को यूज करके कैसे अपनी बात को मनवा सकते हैं | मनवाने से बैटर (better) मैं यह कहूंगा कि अपनी बात को बेहतर तरीके से रख सकते हैं | सामने वाला आपकी बात को अनसुना नहीं कर सके| वह आपकी बात को तवज्जो (impotance दे |
आज के मार्केट में इन तीन बातों को सभी बड़ी-बड़ी कंपनीज (companies) एडवरटाइजमेंट्स (advertisements) और नेता (leaders) यूज़ (use) करते हैं – अपनी बात को अच्छे और बेहतर तरीके से रखने के लिए जिससे कि सामने वाले पर उसका बहुत बड़ा इम्पैक्ट (impact) पड़े | इन बातों की यूज (use) करने से आपकी कम्युनिकेशन स्किल्स (communication skills) भी बहुत बेहतर हो जाती है
लोगो (logos) का मतलब है कि मेरे शब्द आपके लिए मायने रखते हैं। सबसे पहले है लॉजिक अप्लाई (logic apply) करते हैं जब आप अपनी बात को बताने के लिए किसी रीजनिंग (reasoning) का यूज करते हैं या किसी लॉजिक (logic) का यूज करते हैं जो – कि कहीं कुछ लिखा हुआ है या कहीं कुछ मेंशन (mention) है मान लीजिए कि किसी चार्ट में या ग्राफ में जब आप कुछ समझा रहे हो तो उसका एक अलग इम्पैक्ट पड़ता है|
इससे होता क्या है मित्रों की आइस ब्रेक (ice-break) होती है और कन्वर्सेशन स्टार्ट (conversation start) होने लगता है | जब मैं कुछ बोलता हूं और सामने वाले कुछ प्रश्न करें तो ऑटोमेटिकली (automatically) वो इसमें इन्वॉल्व (involved) हो जाते हैं | जब आप शुरू करते हैं तो अभी कन्वर्सेशन शुरू करते हैं । यह लोगों (logos) का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।
मान लीजिए कि आपका कन्वर्सेशन (conversation) आपके किसी फ्रेंड (friend) से हो रहा है और आपको उसको किसी बात पर मनवाना है तो अगर आप अपने पॉइंट्स को बिना किसी लॉजिक या रिजनिंग (reasoning) के एक्सप्लेन (explain) करेंगे तो आपकी बातों पर यकीन नहीं करेगा तो बेहतर यह है कि आप की बातों में लॉजिक या फैक्ट्स या फिगर्स (fact and figures) अगर हो तो उस बात में वजन होगा और लोग उस बात को मानेंगे |
ध्यान रखिए दोस्तों अगर आप बिना किसी लॉजिक (logic) रीजनिंग (reasoning) फैक्ट्स (fact) और फिगर्स (figures) यूज नहीं करते हैं तो आपकी बात में वजन नहीं होगा और सामने वाला आप को हल्के में लेगा | इसलिए पूरी तैयारी करके जाइए | आपके पास वह सभी पॉइंट्स होने चाहिए जो आपकी बात में वजन रखें |
दूसरा सबसे इंपोर्टेंट (important) पॉइंट (point) है एथोस (Ethos): इसका सीधा सा मतलब है जब आप पर कोई विश्वास करता है तो वह विश्वास क्यों करें वह आपको क्यों सुने | इसमें सबसे इंपोर्टेंट चीज होती है आपकी क्रेडिबिलिटी (creditibility) | मान लीजिए आप को क्रिकेट के बारे में नहीं पता बट आप किसी को क्रिकेट के बारे में बता रहे हैं तो हो सकता है आप इसमें कुछ जरूरत से ज्यादा ही बता दे या कुछ गलत बता दे |
मान लीजिए अगर आपका कोई इंटरव्यू है और इस इंटरव्यू मैं आपको किसी क्वेश्चन (question) का आंसर (answer) नहीं पता तो बजाय गलत आंसर बताने के आपको सच बोलना चाहिए कि मुझे इस बारे में नहीं पता है|
मित्रों यह मैं अपने एक्सपीरियंस बता रहा हूं मैं भी पहले जब मुझे कुछ पता नहीं होता था ऐसे ही फेंक देता था कि मुझे पता है और बाद में जब मैं मुँह की खाता तब मुझे रियलाइज (realize) होता था कि मैंने गलत किया मैंने अपनी क्रेडिबिलिटी (creditibility) खो दी| इसलिए आप भी ऐसी गलती ना करें और किसी भी चीज को बढ़ चढ़कर बोलने की बजाय सीधे साफ शब्दों में बताएं अगर आपको पता है तो |
इसका सीधा सा मतलब है आपको अगर कुछ पता है तो यह जानकारी आपको कहां से पता पड़ी है | आपको किसने बताया है | ऐसे लोगों को आप पर भरोसा होता है और वह पहली सीढ़ी है किसी का विश्वास जीतने के लिए |
दूसरा भाग है आपके बोलने का तरीका आप अपनी बात को किस तरीके से बोलते हैं क्या आप उसको किसी स्टोरी टेलिंग की तरह से बताते हैं| स्टोरी टेलिंग आज की डेट (date) में हर कोई यूज़ (use) कर रहे हैं इस से रिलेटेड (related) बहुत से आर्टिकल (articles) गूगल पर आपको मिल जाएंगे |
लेकिन दूसरा भाग कि आप कैसे बोलते हैं, किस तरीके से दिखते हैं , किस तरह से चलते हैं, किस तरह से देखते हैं क्योंकि आज की डेट में सभी लोग बहुत स्मार्ट हो गए हैं | और यह भी जान गए हैं कि किस पर विश्वास करना चाहिए और किस पर नहीं ।
मान लीजिए कि आप किसी इंटरव्यू में जा रहे हैं, तो आपकी ड्रेस कोल्ड देख कर के सामने वाला है समझ जाता है कि आपकी पर्सनालिटी किस टाइप की है और क्या आप उस जॉब के लिए फिट हैं कि नहीं | इसका सीधा सा मतलब है अपने आपको प्रेजेंटेबल (presentable) बनाइए | सही मायनों में बोला जाए तो जो दिखता है वही बिकता है |
Pathos: भावनाएँ, अरिस्टोटल ने क्या कहा यदि आप वास्तव में उन लोगों से जुड़ना चाहते हैं जिन्हें आपको भावनाओं के स्तर पर जुड़ना होगा | और ऐसे दो तरीके हैं जिनसे हम इंसान भावुक हो जाते हैं। एक कहानी है एक उनकी भावनाओं को साझा करने के बारे में |
कहानी भावना का परमाणु (prime) तत्व (element) है। दूसरों की भावनाओं के स्तर पर जुड़ने से है | कभी आपने नोटिस किया होगा जब आप कोई कहानी किसी को बताते हैं और जिसका एन्ड (end) या तो अच्छा होता है या बुरा होता है , तब लोग उस बात को झट से कनेक्ट कर जाते हैं उसको झट से कनेक्ट कर जाते हैं ऐसा क्यों होता है क्योंकि आप भावना के स्तर पर उन लोगों से कनेक्ट हो जाते हैं और वह अपने इंटरेस्ट लेने लगते हैं |
तो सबसे जरूरी यह है इन तीनों पॉइंट्स को बैलेंस तरीके से यूज करना आना चाहिए |
लोगों को यह बताना कि यह आपके लिए क्यों महत्वपूर्ण है यही सबसे ज्यादा जरूरी है
एक बहुत महत्वपूर्ण बात जिससे आपकी कम्युनिकेशन स्किल्स बहुत बहुत अच्छी हो सकती है और वह यह है कि जब आप एक्सपेक्टेशन (expectation) और रियालिटी (reality) के बीच का अंतर कम होता रहता है तब आप बेहतर तरीके से अपनी बातों को रखते हैं और सामने वाला भी आपकी बातों को सुनता है |
दोस्तों जब हम यह जान जाते हैं कि एक्सपेक्टेशन (expectation) और रियालिटी (reality) के बीच का अंतर जब कम होने लगता है तब हम कॉन्फिडेंट (confident) भी रहते हैं और अपनी बात को अच्छे से समझा भी पाते हैं |
एक उदाहरण देखते हैं मान लीजिए आप ऑफिस में किसी कारण से ऑफिस के किसी काम से आप लेट हो गए हैं और आप जब घर पहुंचते हैं तो आपकी मम्मी या पापा या आपकी वाइफ आपको देखते ही बोलते हैं कि आप देर से हैं और आप हमेशा देर से आते हैं।
अब इसमें होता क्या है कि आपको तो यह लगता है कि मैं इन सब के लिए ही तो ही सब कुछ कर रहा हूं | इस सिचुएशन में आप कैसा रिएक्ट करते हैं |
ऐसा लगता है कि आप क्या सुनना चाहते हैं और क्या हो रहा है, इन दो चीजों के बीच एक बड़ा अंतर है – यह अपेक्षा बनाम वास्तविकता है।
इस समय आपके पास एक विकल्प है, लेकिन कई इस विकल्प (option) को नहीं लेते हैं। या तो आप गुस्से से इसका आंसर (answer) दो या हंसकर इस बात को समझाओ कि आप ऑफिस में लेट क्यों हो गए |
मगर यह जो विंडो (window) होती है जिसे मैं कहूंगा रिएक्शन विंडो (reaction window) यह बहुत छोटी होती है लगभग डेढ़ से 2 सेकंड कि | अगर इन 2 सेकंड में अपने पेशेंस रखकर आंसर (answer) दे दिया तो आपकी जिंदगी वाकई में बहुत सरल (simple) और खूबसूरत (beautiful) हो जाएगी
मेरी समझ के अनुसार जब भावनाएं कूदती हैं, तो बुद्धि नीचे जाती है।
क्योंकि अगर आप उस 2 सेकंड की विंडो में ठहराव रखते हैं | तो आप रिएक्शन (reaction) की बजाय रेस्पॉन्ड (respond) करना सीख जाएंगे और 2 सेकंड के उस ठहराव में आपके पास निर्णय या उन शब्दों के बारे में बात करने का विकल्प होता है, जिन्हें आप बोलना चाहते हैं।
कंक्लूजन (Conclusion) : इन तीनों स्टेप्स को logos, ethos, and pathos को अगर आप एक बैलेंस (balanced) तरीके से यूज करते हैं | अपनी बात को फैक्ट्स और फिगर के साथ , बिना किसी मिलावट या बढ़ा चढ़ाकर बताएं, हो सके तो किसी स्टोरी टेलिंग (story telling) टेक्निक (technique) को यूज करके अपने पॉइंट को एक्सप्रेस (express) करते हैं तो लोग आपकी बात मानने को हमेशा एग्री (agree) रहेंगे और आप पर ट्रस्ट (trust) भी बना रहेगा |