क्लैरिटी ऑफ थॉट्स कैसे आती है | सही कैसे सोचे ?
दोस्तों थॉट्स सबको आते हैं और बहुत आते हैं, और जो थॉट्स बहुत ज्यादा हो जाए तो वह स्ट्रेस भी पैदा कर देते
एक रिसर्च के हिसाब से हमें 1 दिन में हमें औसतन 6200 थॉट्स आते हैं | और कुछ रिसर्च में तो हमें 1 दिन में हमें 12,000 से 60,000 थॉट्स आते हैं |
इन सभी विचारों में से 80 परसेंट थॉट नेगेटिव होते हैं, और 95% बार बार आने वाले होते है | मित्रों हम अपने विचारों पर कंट्रोल तो नहीं कर सकते मगर इन को एक दिशा जरूर दे सकते हैं |
हम यह कंट्रोल नहीं कर सकते कि हमें कौन से थॉट चाहिए या नहीं आने चाहिए बट हम यह जरूर कर सकते हैं कि कौन से थॉट पर हमें विचार करना है या नहीं करना है |
यह कैसे पॉसिबल है जब दिमाग में इतनी सारी चीजें एक साथ आ रही हो और हम स्थिर होकर किसी एक थॉट को पकड़े और उस पर सोचे |
विचारों को कंट्रोल करना बिल्कुल ऐसा है जैसे पानी पर एक लकीर खींचना, मगर हम पानी का बांध तो बना ही सकते हैं कि कौन से थॉट पर हमें सोचना है और यह थॉट क्यों आया है अगर इतनी अंडरस्टैंडिंग हमारी बन जाती है तो हम विचारों को एक दिशा दे सकते हैं और उनसे लड़ने की जगह उनका यूज़ करके अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं |
सिर्फ थॉट ही ऐसी शक्ति है जो हम मनुष्य में ही है, क्या आपने किसी जानवर को थॉट करते देखा है, यही थॉट्स की शक्ति हम मनुष्यों को जानवरों से अलग करती है | जानवर ताकत में हमसे बहोत आगे है, सभी चीजें में वो हमसे आगे है , मगर केवल थॉट की शक्ति ही हम मनुष्यों को जानवरों से अलग करती है |
अगर हमारे थॉट नकारात्मक हो जाए तो यह हमारे जीवन के लिए एक अभिशाप बन जाते हैं और ऐसे लोगों से दूसरे लोग भी बात करना पसंद नहीं करते हैं उनसे दूरी बना करके रखते है |
एक नकारात्मक थॉट दूसरों को कम स्वयं को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है क्योंकि नकारात्मक थॉट पहले जिसके अंदर आते हैं उसको नकारात्मक करते हैं फिर बाद में जहां उस थॉट को डालते हैं उसको नकारात्मक करते हैं |
सबसे पहले हमें थॉट्स को समझना है कि थॉट क्या है ?
थॉट एक बुलबुले की तरह है जो आता है और चला जाता है, यह बिल्कुल एक नदी की तरह है जो आता है थोड़ी देर के लिए और फिर चला जाता है,
सभी लोगों के अंदर सभी तरह के थॉट्स आते हैं जो पॉजिटिव भी होते हैं और नेगेटिव भी होते हैं,
सक्सेसफुल लोग अपने विचारों को एक दिशा देते हैं, ऐसा नहीं है कि नेगेटिव थॉट उनके मन में नहीं आते है, मगर वह उस थॉट को महत्व न देते हुए पॉजिटिव थॉट्स पर थिंकिंग करते है अपने विचारों को सही डायरेक्शन देते हैं |
जिस भी थॉट हम ध्यान केंद्रित करते हैं, हम वैसे ही बन जाते हैं, अच्छे विचारों के लिए हमें अच्छी किताबें पढ़नी जरूरी है, क्योंकि थॉट वहीं से आते हैं जो हमने कुछ देखा होता है सीखा होता है अनुभव किया होता है,
अगर हम डरावनी मूवी भी देखते हैं उसके बाद उस मूवी से रिलेटेड थॉटस हमारे दिमाग में आते हैं |
अगर हम कोई हॉरर मूवी देखते हैं तो हमारे अंदर डर के थॉट्स आते हैं, हम मोटिवेशनल वीडियो देखते हैं तो हमारे अंदर पॉजिटिव थॉट्स आते हैं, यह बिल्कुल ऐसा है गार्बेज इन गार्बेज आउट |
कहने का सिंपल सा अर्थ है जिस रंग का चश्मा आपने पहना है दुनिया उसी रंग की नजर आती है | दुनिया ना तो नेगेटिव है और ना पॉजिटिव है, इस दुनिया में कुछ भी नेगेटिव और कुछ भी पॉजिटिव नहीं है,
यह एक लेबल है जो हमने हर चीज पर लगा दिया है, आज जब यही थॉट आउट ऑफ कंट्रोल हो जाए तो फिर स्ट्रेस का नाम दे दिया जाता है, और यह थॉट सही डायरेक्शन में किया जाए प्रोडक्टिविटी और इंटेलिजेंस कहते हैं,
यही थॉट अगर नेगेटिव चीजें पर किया जाए तो हमारे नेगेटिव होने के चांसेस बढ़ जाते हैं |
आज सोशल मीडिया में जहां पर सिर्फ नेगेटिविटी दिखाई जा रही है जिससे कि उनका चैनल चलता रहे और लोगों में डर बना रहे जिससे चैनल की टीआरपी बढ़ती रहे,
अगर देखना ही है तो क्यों ना कुछ अच्छा देखा जाए, जिससे हमारे जीवन में एक अच्छा व्यक्तित्व बने, एक बेहतर इंसान बने |
इससे जुड़ी एक कहानी सुनाता हूं – एक बार एक संत बाबा से उनके एक शिष्य ने पूछा कि बाबाजी विचारों की शक्ति क्या होती है तब बाबा ने उस शिष्य को यह बोला कि तुम ऐसा सोचो कि तुम एक बैल हो, वह शिष्य दो-तीन दिन तक एक कमरे में बैठकर यही सोचने लगा कि वह एक बैल है |
शुरू के 2 दिन बाबा ने उसे कमरे के बाहर बुलाया वह शिष्य जब बाहर आया तो बाबा ने उसको फिर अंदर जाने के लिए बोला, मगर तीसरे दिन जब बाबा ने उसको बाहर आने को बोला तब वह शिष्य बाबा को बोलता है कि मैं बाहर नहीं आ सकता क्योंकि मेरे सींग दरवाजे में अटक रहे हैं |
तो मित्रों विचारों में इतनी शक्ति होती है कि जो हम सोचते हैं वही हम बन जाते, अगर हम यही सोचते हैं कि सभी लोग मेरा बुरा सोच रहे हैं सभी लोग मेरे लिए अच्छा नहीं सोचते हैं तो हम खुद ब खुद ऐसा माहौल तैयार करते हैं जिससे कि वह व्यक्तित्व हमारे अंदर आने लगता है और हम दूसरों के सामने वैसे ही अपने आप को प्रस्तुत करने लगते हैं |
और जब हम दूसरे के सामने प्रस्तुत करते हैं तब दूसरों का रिएक्शन भी बिल्कुल वैसा ही होता है जैसा कि हमने सोचा था, और यह एक पूरी साइकिल बन जाती है जिसमें हम जैसा सोचते हैं वैसा वैसा हमें मिलने लगता है और हम सोचते हैं कि शायद हम जो सोच रहे हैं वह सच है |
तो विचारों की शक्ति को कम मत समझिए, अच्छी किताबें पढ़ें, और अपने विचारों को एक पेपर पर लिखें, वैसे तो एक डायरी में लिखना सबसे अच्छा है, क्योंकि जब हम लिखते हैं तब हम सबसे ज्यादा अच्छा सोचते हैं |
क्योंकि आज के टाइम में जब हमें चीजें इतनी जल्दी जल्दी चाहिए होती है हम सोचते कम है पर रियेक्ट ज्यादा करते हैं जिससे कि हमारी सोच को एक सही डायरेक्शन नहीं मिलता हम थॉट्स के हिसाब से अपने आप को चलाते रहते हैं |
इसी चीज का फायदा सोशल मीडिया को मिलता है, जब हम घंटों यूट्यूब पर एक के बाद एक वीडियो देखना शुरू करते हैं, मगर उन पर एक्ट नहीं करते हैं उन पर कुछ काम नहीं करते तो जो हमने सीखा है तो वह सब देखना बिल्कुल यूजलेस हो जाता है,
फायदा तो तभी है जब हम उस पर एक्ट करें, अपनी डायरी में अपने जीवन के गोल लिखें, सिर्फ गोल लिखने से ही बात नहीं बनती उसके आगे डेट जरूर लिखें कि यह गोल कब तक आपको अचीव करना है |
अब ऐसा करने से आपके विचारों को एक गोल मिल जाता है आप जो भी थॉट करेंगे वह थॉट उस गोल के इर्द-गिर्द ही घूमेगा और आपके विचारों को एक्शन मिल जाएगा, क्यूंकि आपकी सफलता आपके विचारों में है |
क्योंकि एक सही थॉट एक बीज के जैसा होता है जो दिखने में बीज होता है अगर भविष्य में एक बहुत बड़ा पेड़ बन जाता है |
तो मित्रों सही कैसे सोचें, अगर इस टॉपिक से रिलेटेड आपको कुछ नया पता हो तो प्लीज मुझे जरूर बताएं, अगर आपके पास कोई पोस्ट हो तो आप मुझे ईमेल भी कर सकते हैं और अपनी फोटो भी मुझे भेजिए मैं आपके पोस्ट को पढ़कर जरूर इसे शेयर करें आपकामित्र